After Partition in 1947, Pakistan and Bangladesh was formed. Both of these changed their culture, changed their path, separated themselves on the basis of religion and stopped the boundaries with India, so our relations with those two countries changed but India and Nepal did not do this. Despite the different nations, the borders kept open. Having co-ordinated each other and moving forward in every field. In the field of defense-security and on open border, they are developing and developing and will continue to work with firm belief. Action was taken in Bhutan and Myanmar in collaboration with the Government of India to prevent terrorism in the matter of security in India. Similar expectations will also be from Nepal in this regard.
We should not under-estimate our Mathrusakthi and should take along with them. He said that we will not have to go ahead with understanding of our mother tongue as weak. They have to believe in them. They will have to mention in the discussions of the subjects and have to cooperate with them. He said that our destiny, role is our mission one.
On this occasion, President of the program Ranjit Ray former Indian Ambassador Nepal, Special Guest General Gaurav Shamsher Jang Bahadur Rana (Retd.) Former Army Chief Nepal, Shashank Former Foreign Secretary India, Secretary General of International Cooperation Council Shyam Parande etc. were present on the occasion. At the end of the program Dayanand Chandola thanked everyone.
उन्होंने कहा कि हम लोग सांस्कृतिक, सामाजिक, परम्पराओं, धार्मिक व आध्यात्मिक रूप से एक है। हम एक दूसरे के यहा धार्मिक यात्रा करते है। हमारे धार्मिक ग्रंथ व महाकाव्य एक है। इसलिए हमारे संबंध इसी आधार पर मजबूत है।
उन्होंने कहा कि सभ्यता, ऐतिहासिकता के रूप से भी हम एक है। हमारा रोटी-बेटी के संबंध से ही नहीं उससे आगे का संबंध है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि मनुष्य ही समस्या है, मनुष्य ही समाधान है। इसलिए हमारे संबंध, हमारा समन्वय प्रत्येक क्षेत्र में अच्छा रहे, मजबूत रहे और विश्वसनीय बना रहे। इसके लिए हर परिस्थितियों में हमकों मिलकर दृढ़ विश्वास के साथ संशय रहित होकर कार्य करना होगा।
उन्होंने कहा कि १९४७ में भारत का विभाजन हुआ। पाकिस्तान और बंग्लादेश बने। इन दोनों ने अपनी संस्कृति बदली, रास्ता बदला रिलिजन के आधार पर अपने को अलग किया और भारत के साथ सीमायें बंद कर दी इसलिए उन दोनों देशों के साथ हमारे संबंध बदले किन्तु भारत और नेपाल ने ऐसा नहीं किया। अलग राष्ट्र होने पर भी सीमायें खुली रखी। एक दूसरे पर विश्वास करते हुए समन्वय बना कर हर क्षेत्र में आगे बढ़ते रहे। रक्षा-सुरक्षा के क्षेत्र में व खुली सीमा पर मिलकर व समन्यव बनाकर विकास कर रहे हैं और आगे भी दृढ़ विश्वास के साथ विकास कार्य करते रहेंगे। सुरक्षा के विषय में भारत मंे अंतकवाद को रोकने के लिए भूटान और म्यांमार में वहां के सरकार के सहयोग से कार्रवाई की गई। ऐसी ही अपेक्षा इस संबंध में नेपाल से भी रहेगी।
उन्होंने कहा कि हमें मातृशाक्ति को कमजोर न समझकर उसे भी आगे बढा़ना होगा। उनपर विश्वास करना होगा। विषयों की चर्चा में उनका उल्लेख करना होगा और उनसे सहयोग लेना होगा। उन्होंने कहा कि हमारी नियति, भूमिका हमारा मिशन एक है।
इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष रंजीत रे पूर्व भारतीय राजदूत नेपाल, विशिष्ट अतिथि जनरल गौरव शमशेर जंग बहादुर राणा (अवकाश प्राप्त) पूर्व सेनाध्यक्ष नेपाल, शशांक पूर्व विदेश सचिव भारत, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्याम परांडे आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में दयानंद चंदोला ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।