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अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में पारित सर्वसम्मत प्रस्ताव मात्र खानापूर्ति की श्रेणी में नहीं आते। एक क्रमबद्ध प्रक्रिया और गहरे विचारमंथन के पश्चात पारित किए जाने वाले इन प्रस्तावों में जनसत्ता और राजसत्ता दोनों के लिए दिशानिर्देश निहित होता है। ये प्रस्ताव संघ के हित के लिए नहीं, राष्ट्र के हित के लिए पारित होते हैं।
इस वार्षिक बैठक में जारी एक वक्तव्य में स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आज़ाद हिंद फौज द्वारा 21 अक्तूबर 1943 को सिंगापुर में आज़ाद हिंद सरकार का गठन हुआ। इस सरकार को जापान और जर्मनी सहित 9 देशों ने मान्यता दे दी थी। जापान और आज़ाद हिंद फौज के सैनिक अभियानों के फलस्वरूप अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर इस सरकार ने 30 दिसंबर 1943 को भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराकर भारत की आज़ादी का बिगुल बजा दिया था।
अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े जा रहे स्वतंत्रता संग्राम के इस अंतिम निर्णायक अध्याय को इतिहास से गायब कर देने के कुप्रयास के विरुद्ध संघ का ये वक्तव्य एक एतिहासिक दस्तावेज़ है। आज़ाद हिंद सरकार के गठन के 75 वर्ष पूर्ण होने पर संघ की ओर से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि भी है। सर्वविदित है कि स्वतंत्रता संग्राम की अनेक कड़ियों को तोड़ डाला गया। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम, वासुदेव बलवंत फड़के का किसान आंदोलन, सतगुरु राम सिंह का कूका आंदोलन, बंगाल की अनुशीलन समिति का देशव्यापी क्रांतिकारी अभियान, सरदार भगत सिंह द्वारा गठित संस्था हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना, अभिनव भारत, हिंदू महासभा, आर्य समाज, आज़ाद हिंद फौज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी संस्थाओं के नाम जानबूझकर इतिहास के पन्नों में दर्ज होने ही नहीं दिए गए।
स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात उस समय के सत्ताधारियों ने स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानायकों वीर सावरकर, रास बिहारी बोस, सुभाष चंद्र बोस, त्रिलोकीनाथ चक्रवर्ती, सरदार भगत सिंह और डॉ केशव बलिराम हेडगेवार आदि को दरकिनार करके स्वतंत्रता संग्राम को एक ही दल और एक ही नेता के खाते में डालकर जो एतिहासिक अन्याय किया था, उसे सुधारने का सफल प्रयास किया है संघ की इस प्रतिनिधि सभा ने। इसी तरह एक प्रस्ताव के माध्यम से कहा गया है कि ‘भारतीय परिवार व्यवस्था मानवता के लिए अनुपम देन है….. हिंदू परिवार व्यक्ति को राष्ट्र से जोड़ते हुए वसुधैव कुटुम्बकम (समूचा विश्व एक परिवार है) तक ले जाने वाली यात्रा की आधारभूत इकाई है।’ इस प्रस्ताव के माध्यम से एक समरस और संस्कारित समाज के पुनर्निर्माण का आह्वान किया गया है।
पश्चिम के सामाजिक रीति रिवाजों के अंधानुकरण की वजह से हमारी सनातन आदर्श परिवार रचना टूट रही है। धन बटोरने की होड़ में हमारी युवा प्रतिभा विदेशों में पलायन कर रही है। वृद्ध माता पिता वृद्धाश्रम में पहुंचाए जा रहे हैं। परस्पर स्नेह, सहानुभूति और सहायता जैसे शब्द लुप्त होते जा रहे हैं। मां की गोद में जो प्यार और संस्कार मिलते थे, उनका स्थान अब क्रेच जैसी व्यावसायिक संस्थाओं ने ले लिया है। प्रतिनिधि सभा ने भारत की सनातन परिवार व्यवस्था की पुनर्प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया है।
इसी तरह एक प्रस्ताव के माध्यम से संघ ने बिगड़ते पर्यावरण तथा पानी की बर्बादी पर चिंता प्रकट की है। पर्यावरण की रक्षा और जल के संरक्षण के लिए समाज एवं सरकार के स्तर पर प्रयास करने होंगे, संघ ऐसा मानता है। भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों को व्यवहार में लाने से हमारे समाज जीवन पर हो रहे इस आघात को रोका जा सकता है। संघ ने देश भर में वृक्षारोपण अभियान चलाने का निश्चय भी किया है, वैसे कुछ प्रांतों में संघ ने ये अभियान चलाए भी हैं। ‘आवश्यकता के अनुसार प्रकृति का दोहन करो’ इस आदर्श वाक्य पर चलकर ही पर्यावरण की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
शबरीमला मंदिर के विषय पर भी गहरी चर्चा के बाद पारित प्रस्ताव में हिंदुओं की सनातन संस्कृति एवं सामाजिक परंपराओं में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर भी चिंता जताई गई है। ये एक सच्चाई है कि जो प्रांतीय सरकारें हिंदू आस्थाओं को मिटाने का काम कर रही हैं, उनका भारत के सनातन राष्ट्र-जीवन से कुछ भी लेना देना नहीं है।
यहां एक महत्वपूर्ण प्रश्न पैदा होता है कि भारत की न्यायालीय व्यवस्था और मार्क्स-मैकाले के संस्कारों वाले बुद्धिजीवी केवल हिंदुओं की ही आस्था पर आघात क्यों करते हैं। उन्हें वे अंधविश्वास और कट्टर निष्ठाएं क्यों दिखाई नहीं देती जो भारत माता की जय, वंदे मातरम, सरस्वती वंदना, सूर्य नमस्कार आदि भारतीय परम्पराओं को अमान्य कर रही हैं।
प्रतिनिधि सभा ने श्री गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती और जलियांवाला बाग हत्याकांड (स्वतंत्रता की बलिवेदी पर जीवनोत्सर्ग) के 100वें वर्ष पर वक्तव्य जारी कर के राष्ट्र की अस्मिता के रक्षक योद्धाओं का स्मरण किया है। उल्लेखनीय है कि अत्याचारी बाबर की सेना को पापों की बारात कहने वाले श्री गुरु नानक देव जी ने भक्ति की एक प्रचंड लहर प्रारंभ की थी जिसमें से शक्ति का सृजन हुआ था। राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षार्थ अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बनाया गया खालसा पंथ हमारे देश की सशस्त्र भुजा है। इसी तरह जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन अंग्रेज पुलिस अफसर जनरल डायर की गोलियों से शहीद होने वाले देशभक्तों का स्मरण करके संघ की प्रतिनिधि सभा ने लाखों स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी है।
बैठक के अंत में संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेश (भय्याजी) जोशी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि संघ ने श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के विषय को छोड़ा नहीं है, ये आंदोलन स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं हुआ है। मंदिर उसी स्थान पर बनेगा, और उसके निर्धारित स्वरूप में ही बनेगा। हाल ही में हमारी वायूसेना द्वारा पाकिस्तान के भीतर घुसकर एयरस्ट्राइक कर के पुलवामा के शहीदों का जो बदला लिया गया, सरकार्यवाह जी ने इस पराक्रम पर वायुसेना का अभिनंदन किया और भारत सरकार की प्रशंसा की।
उपरोक्त संदर्भ में यदि हाल ही में ग्वालियर में सम्पन्न हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का लेखा जोखा करें तो राष्ट्रहित और राष्ट्रभक्ति की वास्तविक परिभाषा समझ में आ जाती है। इस बैठक की समस्त गतिविधियों से संघ विरोधिय़ों को भी समझ में आ गया होगा कि करोड़ों स्वयंसेवक साधक की भूमिका निभा रहे हैं, सम्पूर्ण संघ एक साधना है और साध्य है राष्ट्र। जिस प्रकार भक्त लोग साधना के माध्यम से प्रभू को प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार संघ के स्वयंसेवक समाज सेवा के माध्यम से परम वैभवशाली राष्ट्र को प्राप्त करने के कार्य में जुटे हैं। अत: ग्वालियर में सम्पन्न हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का संदेश यही है।