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मंदिर के खण्डहरों पर बाबरी ढांचा
अयोध्या के प्रसिद्ध हिन्दू संत स्वामी श्यामानंद को अपना गुरु मानने वाले दोनों मुस्लिम फकीरों ख्वाजा अब्बास और जलालशाह ने बाबर को चेतावनी दी कि यदि रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को नहीं तोड़ा गया तो हिन्दू पुनः संगठित और शक्तिशाली होकर बाबर और उसके सारे सैन्यबल का सफाया कर देंगे। ठीक उसी तरह जैसे राणा संग्राम सिंह के मात्र 30 हजार सैनिकों ने बाबर के 1 लाख सैनिकों को गाजर-मूली की तरह काट डाला था। इसलिए भारत को जीतने का एक मात्र रास्ता यही है कि हिन्दू समाज और हिन्दुत्व के चेतना-स्थल राम मंदिर के स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी जाए। यह बाबरी मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध हो जाएगी और यही हिन्दुस्थान पर बाबर की विजय का स्तम्भ होगी।
दोनों मुसलमान फकीरों ने बाबर को समझाया कि हिन्दुओं के मंदिरों, धर्मग्रंथों, गौशालाओं, पुस्तकालयों, शिक्षा के केन्द्रों और इसी प्रकार के हजारों मानबिंदुओं को समाप्त किए बिना भारत में मुसलमानों का वर्चस्व स्थापित करना असंभव है। यही संस्कृति-केन्द्र वास्तव में हिन्दू समाज के प्रेरणा स्रोत हैं। इन्हीं से प्रेरणा लेकर ही यह हिन्दू बार-बार संघर्ष के लिए उठ खड़े होते हैं।
बाबर भी इसी मंतव्य के साथ भारत में घुसा था। दोनों मुसलमान फकीरों ने बाबर का स्वागत करते हुए उसका उत्साह बढ़ा दिया। दोनों की मदद का आश्वासन लेकर बाबर ने अपने सेनापति मीरबांकी को मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का आदेश दे दिया। यह शाही फरमान एक प्रसिद्ध पत्रिका ‘मार्डन रिव्यू’ के जुलाई 1924 के अंक में इस तरह छपा था – ‘शहंशाह हिन्द मुस्लिम मालिकुल जहां बादशाह बाबर के हुक्म व हजरत जलालशाह के हुक्म के बमूजिब अयोध्या में राम जन्मभूमि को मिसार करके उसके जगह उसी के मलबे व मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गई है। बजरिए इस हुक्मनामे के तुम को इत्तिला किया जाता है कि हिन्दुस्तान के किसी भी सूबे से कोई हिन्दू अयोध्या न आने पाए’।
मुगल बादशाह यह आदेश देकर निश्चिंत होकर चला गया, उसे लगा कि हिन्दू अब प्रतिकार नहीं कर सकते। बिना किसी रोकटोक के मंदिर पर मस्जिद चढ़ा दी जाएगी। उसके सेनापति मीरबांकी ने भी इस काम को आसान समझकर अपने सैन्यबल के सहारे मंदिर को गिराने का ऐलान कर दिया। इस अभियान को प्रारम्भ करते ही उसे समझ में आ गया कि हिन्दू समाज इस काम को सरलता से सफल नहीं होने देगा, उसका अनुमान सत्य निकला। हिन्दुओं ने मीरबांकी की विशाल सेना की ईंट से ईंट बजा दी। जमकर संघर्ष हुआ, मंदिर के पुजारी, साधु संत, निकटवर्ती राजाओं के सैनिक और साधारण नागरिक सभी ने मंदिर की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।
बाबर हिन्दुस्थान में दिल्ली शासक के रूप में केवल 5 वर्ष ही रहा। 1526 से 1530 तक हिन्दुओं ने उसे चैन से नहीं बैठने दिया। हिन्दू राजाओं के सैनिकों ने बाबरी सेना के कई लाख सैनिकों को जहन्नुम पहुंचाया। सन्यासियों ने गांव-गांव में जाकर के हिन्दुत्व की अलख जगाई। मीरबांकी ने राष्ट्र की आत्मा पर प्रहार किया था, सारा देश हिल उठा। राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षा के लिए हिन्दू समाज ने जमकर प्रतिकार किया। हंसवर राज्य के नरेश रणविजय सिंह, महारानी जयराजकुमारी, भीटी के राजा महताब सिंह, स्वामी महेश्वरानंद और पंडित देवीदीन पांडे ने अपने-अपने सैन्यबलों के साथ लाखों मुगल सैनिकों की कुर्बानियां लेकर अपने बलिदान दिए थे।
मुसलमान सेनापति मीरबांकी ने भी अत्याचारों की झड़ी लगा दी। अंग्रेज इतिहासकार और मीरबांकी के प्रशासनिक अधिकारी हेमिल्टन ने इस जालिम मुस्लिम सेनापति के कुकृत्यों का परिचय बाराबंकी के गजेटियर में इस प्रकार दिया है-‘जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बनाकर लखौरी ईंटों को मस्जिद की नींव में लगा दिया। इतिहास में यह भी दर्ज है कि आसानी से मंदिर को गिरा देने का मीरबांकी का इरादा मिट्टी में मिल गया। भारत के इस चेतनास्थल की रक्षा के लिए लाखों शीश चढ़ गए। प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम ने लिखा है -‘जन्मभूमि के गिराए जाने के समय हिन्दुओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी और 1 लाख 73 हजार लाशें गिर जाने के बाद ही मीरबांकी मंदिर को तोप से गिराने में सफल हो सका।’
इतने खून-खराबे के बाद बाबर ने मंदिर के स्वरूप को बिगाड़कर जो मस्जिदनुमा ढांचा खड़ा कर दिया था उसे हिन्दुओं ने कभी स्वीकार नहीं किया। बाबर द्वारा मंदिर को ध्वस्त करके उस पर जबरदस्ती एक ढांचा खड़ा करने के पश्चात भी हिन्दू एक क्षण के लिए भी चुप नहीं बैठे। श्रीराम जन्मभूमि के स्थान पर मंदिर का पुर्ननिर्माण करने के लिए हिन्दू समाज ने 76 बार आक्रमण करके 4 लाख से भी ज्यादा बलिदान दिए हैं। इसलिए श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण अवश्य हमारे राष्ट्र के स्वाभिमान, अस्मिता और अखंडता के साथ जुड़ गया है। अगर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ तो किसी शक्तिशाली आन्दोलन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ———शेष कल