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विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष डाॅ0 प्रवीणभाई तोगडि़या एवं
संयुक्त महामंत्री डाॅ0 सुरेन्द्र कुमार जैन का संयुक्त प्रैस वक्तव्य
नई
दिल्ली, 23 सितम्बर। विश्व हिन्दू परिषद मुम्बई उच्च न्यायालय के इस
निर्णय कि, ‘‘बकरीद पर भी गौहत्या पर से पाबंदी नहीं हटेगी’’ का हार्दिक
स्वागत करती है। न्यायपालिका के निर्णय के बाद कोई विवाद नहीं रहना चाहिए;
परन्तु अब न्यायपालिका की दुहाई देने वाले तथाकथित सैक्युलरवादियों और
मुस्लिम समाज के एक वर्ग ने इस निर्णय का विरोध करते हुए सब प्रकार की
सीमाएं लांघ दी है, जो अत्यन्त दुःखदायी है। इसी प्रकार श्रीनगर उच्च
न्यायालय ने भी जम्मू-कश्मीर में लागू कानून का हवाला देते हुए कहा कि
जम्मू-कश्मीर में गौहत्या नहीं होनी चाहिए और वहां का प्रशासन कड़ाई से इस
आदेश का पालन करे। इस निर्णय के तुरंत बाद कश्मीर घाटी के अलगाववादियों,
नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपीके एक वर्ग ने जिस तरीके से इस निर्णय का विरोध
किया है, विहिप उसकी कठोर शब्दों में निन्दा करती है। घाटी बंद कराना,
हिंसक प्रदर्शन करना, पाकिस्तान के झण्डे लहराना तो ऐसा लगता है कि
अलगाववादियों का पेशा बन गया है जिसके लिए वे मौका ढूंढते हैं। परन्तु
जम्मू कश्मीर के कुछ राजनीतिक नेताओं का यह कहना कि यह निर्णय इस्लाम की
तौहीन है, हम न्यायालय की नहीं इस्लाम की मानेंगे तथा इस्लाम के अनुसार
गौहत्या अनिवार्य है, घोर निन्दनीय है। विपक्ष में आने पर ये नेता न केवल
अलगाववादियों के प्रवक्ता बन जाते हैं अपितु अपना आधार खो चुके
अलगाववादियों को नया जीवन प्रदान कर देते हैं। इनके द्वारा जम्मू कश्मीर
विधानसभा में न्यायालय के निर्णय को परास्त करने के लिए विधेयक लाना
न्यायपालिका का ही नहीं, हिन्दू समाज की आस्थाओं का अपमान है जिसकी हर
देशभक्त नागरिक को भत्र्सना करनी चाहिए। यदि यह विधेयक लाया गया तो विहिप
इसके विरोध में देशव्यापी आन्दोलन करेगी।
दिल्ली, 23 सितम्बर। विश्व हिन्दू परिषद मुम्बई उच्च न्यायालय के इस
निर्णय कि, ‘‘बकरीद पर भी गौहत्या पर से पाबंदी नहीं हटेगी’’ का हार्दिक
स्वागत करती है। न्यायपालिका के निर्णय के बाद कोई विवाद नहीं रहना चाहिए;
परन्तु अब न्यायपालिका की दुहाई देने वाले तथाकथित सैक्युलरवादियों और
मुस्लिम समाज के एक वर्ग ने इस निर्णय का विरोध करते हुए सब प्रकार की
सीमाएं लांघ दी है, जो अत्यन्त दुःखदायी है। इसी प्रकार श्रीनगर उच्च
न्यायालय ने भी जम्मू-कश्मीर में लागू कानून का हवाला देते हुए कहा कि
जम्मू-कश्मीर में गौहत्या नहीं होनी चाहिए और वहां का प्रशासन कड़ाई से इस
आदेश का पालन करे। इस निर्णय के तुरंत बाद कश्मीर घाटी के अलगाववादियों,
नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपीके एक वर्ग ने जिस तरीके से इस निर्णय का विरोध
किया है, विहिप उसकी कठोर शब्दों में निन्दा करती है। घाटी बंद कराना,
हिंसक प्रदर्शन करना, पाकिस्तान के झण्डे लहराना तो ऐसा लगता है कि
अलगाववादियों का पेशा बन गया है जिसके लिए वे मौका ढूंढते हैं। परन्तु
जम्मू कश्मीर के कुछ राजनीतिक नेताओं का यह कहना कि यह निर्णय इस्लाम की
तौहीन है, हम न्यायालय की नहीं इस्लाम की मानेंगे तथा इस्लाम के अनुसार
गौहत्या अनिवार्य है, घोर निन्दनीय है। विपक्ष में आने पर ये नेता न केवल
अलगाववादियों के प्रवक्ता बन जाते हैं अपितु अपना आधार खो चुके
अलगाववादियों को नया जीवन प्रदान कर देते हैं। इनके द्वारा जम्मू कश्मीर
विधानसभा में न्यायालय के निर्णय को परास्त करने के लिए विधेयक लाना
न्यायपालिका का ही नहीं, हिन्दू समाज की आस्थाओं का अपमान है जिसकी हर
देशभक्त नागरिक को भत्र्सना करनी चाहिए। यदि यह विधेयक लाया गया तो विहिप
इसके विरोध में देशव्यापी आन्दोलन करेगी।
बकरीद
मुस्लिम समाज का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। उनके धर्मशास्त्रों के अनुसार
इस दिन उनको अपनी सबसे प्रिय वस्तु की कुर्बानी देनी होती है; परन्तु अब
उनमें बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा स्थापित हो चुकी है। इसीलिए इसको
बकरीद भी कहा जाने लगा है; परन्तु पर्यावरण सुरक्षा के लिए कुछ मुस्लिम
देशों में इस परंपरा में कुछ सीमाएं लगाई हैं जिससे मानव-पशु का संतुलन
बचाया जा सके। गाय जिसको सम्पूर्ण समाज माता के रूप में पूजता है तथा जिसकी
रक्षा के लिए वह अपना सर्वस्व बलिदान करता रहा है क्योंकि इसकी रक्षा करना
वह अपना धार्मिक कर्तव्य मानता है, की कुर्बानी करना किसी भी मुस्लिम देश
का मुसलमान अपना अधिकार नहीं मानता। परन्तु दुर्भाग्य से भारत के मुस्लिम
समाज का एक वर्ग इस्लामी निर्देशों की अवहेलना कर गौहत्या को अपना अधिकार
मानता है और बकरीद के दिन गऊ माता की कुर्बानी कर हिन्दू समाज की भावनाओं
को आहत करता है। इसके लिए वे भारत की न्यायपालिका, संविधान, परंपराओं से
टकराने के लिए किसी भी सीमा तक जाता है। औरंगजेब, बाबर, गजनी को अपना आदर्श
मानने वाले ये लोग इसी मानसिकता के शिकार होंगे। विश्व हिन्दू परिषद इस
मानसिकता की घोर भत्र्सना करता है। जब तक वे इन आक्रमणकारियों की जगह डाॅ0
एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान देशभक्तों को अपना आदर्श नहीं मानेंगे वे इसी
तरह नफरत की राह पर चलने के लिए मजबूर होंगे।
मुस्लिम समाज का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। उनके धर्मशास्त्रों के अनुसार
इस दिन उनको अपनी सबसे प्रिय वस्तु की कुर्बानी देनी होती है; परन्तु अब
उनमें बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा स्थापित हो चुकी है। इसीलिए इसको
बकरीद भी कहा जाने लगा है; परन्तु पर्यावरण सुरक्षा के लिए कुछ मुस्लिम
देशों में इस परंपरा में कुछ सीमाएं लगाई हैं जिससे मानव-पशु का संतुलन
बचाया जा सके। गाय जिसको सम्पूर्ण समाज माता के रूप में पूजता है तथा जिसकी
रक्षा के लिए वह अपना सर्वस्व बलिदान करता रहा है क्योंकि इसकी रक्षा करना
वह अपना धार्मिक कर्तव्य मानता है, की कुर्बानी करना किसी भी मुस्लिम देश
का मुसलमान अपना अधिकार नहीं मानता। परन्तु दुर्भाग्य से भारत के मुस्लिम
समाज का एक वर्ग इस्लामी निर्देशों की अवहेलना कर गौहत्या को अपना अधिकार
मानता है और बकरीद के दिन गऊ माता की कुर्बानी कर हिन्दू समाज की भावनाओं
को आहत करता है। इसके लिए वे भारत की न्यायपालिका, संविधान, परंपराओं से
टकराने के लिए किसी भी सीमा तक जाता है। औरंगजेब, बाबर, गजनी को अपना आदर्श
मानने वाले ये लोग इसी मानसिकता के शिकार होंगे। विश्व हिन्दू परिषद इस
मानसिकता की घोर भत्र्सना करता है। जब तक वे इन आक्रमणकारियों की जगह डाॅ0
एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान देशभक्तों को अपना आदर्श नहीं मानेंगे वे इसी
तरह नफरत की राह पर चलने के लिए मजबूर होंगे।
जारीकर्ता
अनिल अग्रवाल
169, नार्थ एवेन्यू, नई दिल्ली