जहां कम कानून, वह अच्छा राज्य: Dr मनमोहन वैद्य

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भोपाल, 27 जुलाई 2014। कानून से समाज का संचालन करते जाएंगे तो व्यवस्था ठीक नहीं रहेगी। समाज के अपने मूल्य होने चाहिए,जिनसे समाज संचालित हो। जहां कम से कम कानून होते हैं, वह राज्य अच्छा होता है। राज्य या सरकार द्वारा प्रत्येक काम किया जाए, यह व्यवस्था भी ठीक नहीं है। समाज की रचना ऐसी बनानी चाहिए कि सभी कार्यों के लिए सरकार पर आश्रित न रहना पड़े। यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने व्यक्त किए। उन्होंने दो दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला के समापन सत्र में’विचारधारा और मीडिया: चुनौतियां एवं अवसर’ विषय देशभर से आए अधिवक्ताओं को संबोधित किया। कार्यशाला का आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,भोपाल एवं अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
श्री वैद्य ने कहा कि मीडिया ने ऐसा वातावरण खड़ा कर दिया है कि संघ भाजपा पर नियंत्रण रखता है। भाजपा के माध्यम से संघ अपना कोई हिडन एजेंडा पूरा करना चाहता है। जबकि वास्तविकता यह नहीं है। हमें यह छवि तोड़नी होगी। इसके लिए मीडिया को समझना जरूरी है। मीडिया जनसंचार का माध्यम है,इसकी ताकत का उपयोग राष्ट्रहित में किया जाना चाहिए।
कॉमन सिविल कोड और धारा-370 हिन्दुत्व के मुद्दे नहीं : श्री वैद्य ने कहा कि कॉमन सिविल कोड और धारा-370 हिन्दुत्व के मुद्दे नहीं है। ये राष्ट्र से जुड़े मुद्दे हैं। अल्पसंख्यक विरोध भी हिन्दुत्व नहीं है। हिन्दुत्व साम्प्रदायिक और संकुचित नहीं है बल्कि वह तो समाज को जोड़ने वाली जीवन पद्धति है। उन्होंने कहा कि संघ की छवि भी ऐसी ही भ्रामक बना दी गई है। संघ की ओर से बड़े स्तर पर सेवाकार्य किए जा रहे हैं, मीडिया में उनकी भी चर्चा होनी चाहिए। इससे पूर्व कार्यशाला में दूसरे दिन ’मीडिया ट्रायल’ और ‘महिला अधिकार एवं कानून’विषय पर पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। इसमें मीडिया विशेषज्ञ केजी सुरेश,राकेश खर और लाजपत आहूजा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मीडिया से संवाद विषय पर वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत एवं एम. राममूर्ति ने अपने विचार रखे।
मीडिया और अधिवक्ताओं का संवाद शुभ संकेत: प्रो. कुठियाला
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में शनिवार को एमसीयू के कुलपति प्रो. ब्रज किशोर कुठियाला ने कहा कि वर्तमान समय में मीडिया और न्यायपालिका दो महत्वपूर्ण अंग हैं। परन्तु विडम्बना यह है कि अब तक दोनों में संवाद अधिक नहीं था। इस कार्यशाला के माध्यम से अधिवक्ताओं ने मीडिया को समझने की जो शुरुआत की है, वह एक शुभ संकेत है। मीडिया को प्रोडक्ट एवं वॉचडॉग की संज्ञा दी गई है। यह धारणा मीडिया की शक्ति और उसके सम्मान को ठेस पहुंचाती है। यह धारणा इसलिए बनी है क्योंकि मीडिया संगठनों क संचालन पूंजीपतियों के हाथों में है। जो पूंजी निवेश करते हैं, वे लाभ भी चाहते हैं। दिक्कत तब खड़ी होती है जब लाभ, लोभ में बदल जाता है। इसलिए जरूरत है कि मीडिया में पूंजी सामाजिक साधनों से आए। उन्होंने कहा कि मीडिया ने मनुष्य की सम्प्रेषण क्षमताओं का विस्तार किया है। जो कार्य मनुष्य अपने अंगों से सीमित रूप से कर सकता है उसे विस्तार मीडिया ने दिया है। दो दिवसीय कार्यशाला में अलग-अलग सत्रों में संघ के वरिष्ठ प्रचारक नंद कुमार, वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा,आलोक वर्मा, ज्ञानंत सिंह,गिरीश उपाध्याय, संजय द्विवेदी और आशीष जोशी सहित सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता ज्योतिका कालरा ने भी विचार व्यक्त किए।

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