पंचाम्रित

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।। पंचाम्रित ।।

1. लोगों की सेवा में स्वयं लोग
आर.एस.एस मित्रों की “सेवा भारती” उपेक्षित बंधु जनों की पीड़ा को कम करने के लिए तमिलनाडु के 31 जिलों में 541 स्थानों पर 8,000 से अधिक सेवा कार्यों के माध्यम से मानवीय गतिविधियों में संलग्न है।
सभी समुदायों के लगभग 3,200 भाई-बहन सेवा भारती कार्यकर्ता बन गए हैं, जो एक संकेत है कि सेवा करने का दिव्य आवेग लोगों के बीच फैल गया है और जड़ें जमा चुका है। (स्रोत : यह जानकारी 3 मार्च, 2024 को पुणे में महाराष्ट्रीय धर्मार्थ संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जन कल्याण समिति’ द्वारा पढ़े गए प्रशंसा पत्र में मिली, जब श्री गुरुजी पुरस्कार दक्षिण तमिलनाडु सेवा भारती को प्रदान किया गया था)।

2. हज़ारों भूखे छात्र को अन्न एक मठ से
कर्नाटक में सिरा और तुमकूरु क्षेत्रों में 2,000 पिछड़े वर्ग के छात्रों को समायोजित करने के लिए 18 छात्रावास हैं। सरकार खाद्य पदार्थ व्यापार निगम और संबंधित जिला अधिकारियों के माध्यम से उन्हें हर तिमाही चावल उपलब्ध करा रही है। छात्रावास में चावल की आपूर्ति में समस्या थी क्योंकि चावल, जिसे अक्टूबर 2023 में वितरित किया जाना था, में देरी हुई और जनवरी तक उपलब्ध नहीं हुआ। इसके अलावा, तुमकूरु जिला अधिकारियों के पास चावल का कोई स्टॉक नहीं है। यह सुनकर सिद्धगंगा मठ ने 180 क्विंटल चावल देकर मदद की। गौरतलब है कि सिद्धगंगा मठ ने सही समय पर बच्चों की भूख मिटाई। कई हिंदू मठ कई वर्षों से लोगों के कल्याण के लिए सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
(स्रोत: द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, बंगलूरु, 9 – 2 – 2024)

 

3. वेद पाठ्शाला जो सिखाई एक पाठ

पालक्काड़ (केरल) के रामनाथपुरम क्षेत्र में, वैदिक पाठशाला के शिक्षक गिरिधर लोगों के लाभ के लिए, कचरा डंप बन गये कुओं और तालाबों को शुद्ध करने मे लगे हैं । इस जीवनदायी जल संरक्षण सेवा में पाठशाला विध्यार्थियों को शामिल करते हैं। वैदिक विद्यालय में 22 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। वहाँ शुक्ल यजुर्वेद, ऋग्वेद, कृष्ण यजुर्वेद पढ़ाये जाते हैं। अध्ययन के समय के बाद रस्सी और सफाई उपकरणों के साथ कुओं को साफ करने के लिए निकलते हैं। उन्होंने बताया कि अब तक लोगों के उपयोग के लिए 15 कुओं और 5 तालाबों का पुनर्निर्माण किया गया है।
(स्रोत: दूरदर्शन (डीडी) मलयालम चैनल)

4. तपस्या की जीत
एक बार श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रत्यक्ष शिष्य स्वामी अकंण्डानंद (1864-1937) की मुलाकात कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति आशुतोष मुखर्जी (1864-1924) से हुई। स्वामीजी ने वी.सी. के कमरे में प्रवेश किया और पाया कि वह अंग्रेजी पुस्तकों से भरा हुआ था। उन्होंने मुखर्जी से पूछा, “आप एक शक्तिशाली पद पर हैं। क्या आपको संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं करना चाहिए? क्या संस्कृत हमारे देश की रीढ़ नहीं है?” शुद्ध हृदय से निकले शब्दों ने आशुतोष को प्रभावित किया प्रतीत होता है। लॉर्ड रोनाल्डसे की पुस्तक ‘द हार्ट ऑफ आर्यावर्त’ पढ़ने से आपको उस तपस्वी की सलाह के प्रभाव का अच्छा अंदाजा हो जाएगा। इसमें लिखा है, ”अगर लॉर्ड मैकाले अभी कलकत्ता आते और इस विश्वविद्यालय का दौरा करते, तो उन्हें अपनी मूर्खता से नफरत होती और उन्हें संस्कृत की महानता का एहसास होता, यह देखकर कि वही संस्कृत, जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि ‘एक ही अलमारी में संस्कृत का पूरा साहित्य समा सकता है’ , वही भाषा, विश्वविद्यालय के 12 विभागों में शिक्षा की भाषा बन गई है।
(स्रोत: चेन्नई का तमिल मासिक ‘श्री रामकृष्ण विजयम’ सितंबर 2008 अंक)

5. अल विदा कहने के लिए एक जीवन
भारत की राजधानी दिल्ली में रहने वाली 26 साल की पूजा शर्मा अब तक 4,000 शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। “साल 2022 में मेरी आंखों के सामने मेरे भाई की हत्या कर दी गई”, पूजा कहती हैं,मैंने अपनी निजी उदासी को दूसरों के लिए आराम का जरिया बना लिया।” पहले लावारिस शवों के बारे में जानकारी लेने के लिए पुलिस विभाग और सरकारी अस्पतालों से संपर्क उन्होंने ही किया करती। लेकिन अब वे इनसे संपर्क कर रहे हैं। एक शव का अंतिम संस्कार करने में 1,200 रुपये का खर्च आता है। वह अंतिम संस्कार के लिए गंगा जल खरीदने पर भी खर्च करती हैं। उन्हें अपने दादा की पेंशन काम आता है। पूजा शर्मा का शहर में काफी स्वागत है। सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री रखने वाली पूजा ने अपनी शादी टलने के बावजूद अपना सेवा कार्य जारी रखा है।
(स्रोत: ‘दिन तंति’, 28 – 12 – 2023)

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