राम पंचाम्रित

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राम पंचाम्रित

आज (एप्रिल 8, 2024) अमावास्या है और पंचाम्रित आपके समक्ष

इस पंचाम्रित श्री राम के गुणों को समर्पित है राम नवमी 17 अप्रैल को है

1 राजनीतिक समज

राम अपने पिता दशरथ के आदेश के अनुसार 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौट आए और शासन की जिम्मेदारी संभाली। लेकिन राम यह परीक्षण करने के बाद ही सिंहासन पर बैठे कि क्या उनके छोटे भाई भरत, जो इतने वर्षों से शासन को चला चुके थे, शासन करने में रुचि रखते थे। यदि भरत सत्ता में बने रहना चाहते तो राम शासन का उत्तरदायित्व छोड़ने को तैयार थे। यह भगवान राम की मर्यादा का उदाहरण है।

 

 

 

2 कर्तव्य सतर्कता

अपने वनवास के दौरान राम वहां ऋषि-मुनियों की तरह रहते थे। परंतु उन्होंने अपना क्षात्र धर्म नहीं छोड़ा। राक्षसों के हमलों से निर्दोष वनवासी लोगों की रक्षा करने के अपने कर्तव्य को नहीं भूले। उनकी जिम्मेदारी तब और बढ़ गई जब ऋषियों ने भगवान राम से उन्हें बचाने के लिए कहा। सीता ने आपत्ति जताते हुए कहा कि राक्षसों को नष्ट करना आपकी ताकत का दुरुपयोग होगा, जबकि उन्होंने आप पर सीधे हमला नहीं किया। राम ने स्पष्ट उत्तर दिया कि कानून का पालन करने वालों को परेशान करने वाले दुष्टों को दबाना या नष्ट करना मेरा कर्तव्य है। वह सीता और लक्ष्मण तक का त्याग करने को तैयार थे और अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहते थे। बाद में आवश्यकता पड़ने पर इतिहास ने उन्हें भी त्याग दिया। यहां यह सिद्ध हो गया है कि राम धर्म का प्रतीक है।

 

 

 

3 मित्रता शास्त्र

राम का मित्रता बनाने का तरीका अद्भुत है। उन्होंने सुग्रीव को मित्र के रूप में स्वीकार कर लिया। उन्होंने बाली को मारकर और सुग्रीव को किष्किंदा का राजा बनाकर मित्रता की संधि में अपना हिस्सा पूरा किया। लेकिन सुग्रीव ने राम की मदद न करके देरी कर दी। राम की फटकार के बाद उन्होंने खुद को सुधारा। इसके बाद राम पूरे दमखम के साथ राम कार्य में लग गए।

 

 

4 महान आत्मविश्वास

राम अपने अनुयायियों के पर्यवेक्षक थे। विभीषण राम के सम्मुख आत्म समर्पण करने आये। राम ने उपस्थित सभी लोगों से कहा कि आप बिना डरे अपनी बात रखें। लेकिन राम का निर्णय बाकी सभी लोगों के निर्णय के बिल्कुल विपरीत था; भले ही वह रावण था जो आत्मसमर्पण करने आ रहा था, राम ने, शरण देने के अपने गुण का दृढ़ता से पालन करते हुए, विभीषण को शरण देने का फैसला किया। राम का अद्भुत आत्म विश्वास देखिए। राम, जो अपने जीत पर दृढ़ थे, भले ही दुश्मन कितना भी मजबूत क्यों न हो, विभीषण को श्रीलंका का राजा बनाया ताकि युद्ध के बाद श्रीलंका के लोग अलग-थलग न पड़ें।

 

 

5 जन मानस का ज्ञान

रावण के वध के बाद सीता को बचाया गया था। राम खुश थे। लेकिन राम ने सीता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। वानरों और राक्षसों की एक बड़ी भीड़ सांस रोककर इंतजार कर रही थी कि क्या होगा। राम को तो उस लोक मनोविज्ञान मालुम कि लोग भगवान पर भी दोष देने में संकोच नहीं करते। सीता ने स्थिति को समझा। उनके लिए राम ही जीवन हैं। राम अस्वीकार करने से मृत्यु को समाधान मानकर अग्नि प्रवेश करने का निर्णय सीता की ही है। राम ने उसे अग्नि प्रवेश से नहीं रोका। क्या वह अग्नि उस सीता को स्पर्श करेगी, जिन्होंने अग्नि देव से प्रतिज्ञा ली थी कि राक्षसों द्वारा हनुमान की पूंछ पर लगाई गई आग से वह नहीं जलेगा? जैसा कि अपेक्षित था, सीता सुरक्षित राम के पास पहुँच गयी।

(स्रोत: स्वामी हर्षानंद की ‘ए कॉन्साइज इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदूइज्म’, खंड 3)

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 हज़ारों की जान बचाने दौडे ग्रामीण दम्पती

षण्मुकैया-कुरुंदम्माल दंपति रात करीब 12.50 बजे तेनकासी जिले के सेंकोट्टई के बगल में भगवतीपुरम के पास अपने घर से बाहर निकले, जब उन्होंने तेज आवाज सुनी और देखा कि एक ट्रक 18 फीट नीचे रेलवे ट्रैक पर गिर रही है। उन्हें दूर से आती हुई रेलगाड़ी की आवाज सुनाई दी। वे हाथ में टॉर्च की रोशनी लेकर ट्रेन की दिशा में पटरी पर दौड़े और ट्रेन रोक दी। उनकी सद्भावना से एक बड़ा रेल हादसा टल गया।

(स्रोत: ‘दिनसरी’ ऑनलाइन समाचार पत्र 26 – 2 – 2024)

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