RSS chief Mohan Bhagwat visits Dnyaneshwar Samadhi, Alandi-Pune

13
VSK TN
    
 
     

वारकरी एवं भक्तों से सराबोर अलंकापुरी में रा. स्व. संघ के
सरसंघचालक डा. श्री. मोहनजी भागवत ने किए माऊली के दर्शन

पिंपरी – भक्ति एवं अध्यात्म का प्रचार, प्रसार जिस स्थान से होता है
वह चैतन्य का केंद्र होता है। ऐसे स्थान में यदि कोई जाने-अनजाने ही आ जाता है तब
भी वह प्रेरित होकर जाता है। सृष्टी का अस्तित्व इस तरह के जागृत स्थानों के कारण
ही है। ऐसे स्थानों का दर्शन लेने से काफी ऊर्जा मिलती है,
यह उद्गार रा. स्व. संघ के सरसंघचालक डा. श्री. मोहनजी
भागवत ने व्यक्त किए। वे आलंदी संस्थान द्वारा किए गए सत्कार के अवसर पर बोल रहे
थे।
श्री ज्ञानेश्वर महाराज संस्थान के मुख्य विश्वस्त डा.
प्रशांत सुरू ने शाल, श्रीफल, माऊली (संत श्री ज्ञानेश्वर) की प्रतिमा एवं श्री
ज्ञानेश्वरी ग्रंथ देकर डा. भागवत को सम्मानित किया।
श्री ज्ञानेश्वर महाराज पालकी प्रस्थान समारोह के तैयार
अलकापुरी (आलंदी) में रा. स्व. संघ के सरसंघचालक डा. श्री. मोहनजी भागवत ने श्री
श्री ज्ञानेश्वर महाराज की समाधी के दर्शन किए। इस अवसर पर आलंदी देवस्थान संस्थान
के विश्वस्त, प्रबंधक तथा संघ के पुणे विभाग संघचालक अप्पा गवारी, जिला संघचालक
डा. भास्कर भोसले, शहर संघचालक डा. गिरीश आफले, प्रांत कार्यवाह विनायकराव थोरात
आदी के साथ अनेक भक्त, महाराज उपस्थित थे।
संत ज्ञानेश्वर के समाधि स्थल आलंदी आणि संत तुकाराम के
समाधि स्थल देहू से हर वर्ष पंढरपूर के लिए पालकी समारोह होते है जिन्हें वारी कहा
जाता है। ये समारोह महाराष्ट्र के प्रमुख धार्मिक एवं आध्यात्मिक समारोहो में से
एक है।
इस यात्रा में सहभागी होने के लिए हर साल पांच लाख से
ज्यादा पुरुष एवं महिलाएं आलंदी और देहु पहुंचते हैं जिन्हें वारकरी कहा जाता है।
ये वारकरी माऊली-माऊली अथवा ज्ञानबा-तुकाराम का घोष करते हुए पंढरपूर को पैदल जाते
है। वारकरी संत ज्ञानेश्वर को भक्तिभाव से माऊली कहते है जिसका अर्थ है मां। संत
ज्ञानेश्वर को सभी संतों एवं भक्तों की मां माना जाता है वहीं संत तुकाराम को
वारकरियों के प्रणेता मानने की परंपरा है।  
लगभग डेढ़ महिने की यात्रा के बाद पंढरपुर में आषाढ़ी
एकादशी के दिन विश्व विख्यात विट्ठल मंदिर में सभी वारकरी अपने प्रिय भगवान के
दर्शन करते है जिन्हें भगवान कृष्ण का एक रूप माना जाता है। यहां मंदिर में देवी
रुक्मिणी भी विट्ठल के साथ विराजमान है। भगवान विट्ठल को विठोबा
, पांडुरंग, पंढरीनाथ के नाम से भी पुकारा जाता है।
महाराष्ट्र में संतों की परंपरा में संत ज्ञानेश्वर को पहला
संत माना जाता है लेकिन
वारी का इतिहास उनके पूर्व से प्रचलित है। संत श्री ज्ञानेश्वर, संत श्री नामदेव, संत श्री सावता माली, संत श्री चोखोबा, संत श्री तुकाराम महाराज आदी
संत
ों ने इसे आगे बढ़ाया। 
यह परंपरा लगभग सात सौ वर्ष पुरानी है। परंतु
आज जो पालकी समारोह होता है उसकी शुरूआत संत तुकाराम महाराजा के पुत्र श्री नारायण महाराज देहुकर ने न् १६८५ में की थी।
संत तुकाराम की पादुका देहू से पालकी में रखकर वे लंदी ले जाते थे और वहां से
संत ज्ञानेश्वर की
पादुकाओं के साथ पंढरपूर ले जाते थे। सन् १८३१ में दोनों पालकियां अलग
मार्ग से निकलती है लेकिन कुछ अंतर जाने के बाद वे एक होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

RSS chief releases a book 'Paritapth Lankeshwari' at Bhopal

Sun Jul 12 , 2015
VSK TN      Tweet                                        Smt Sumithra Mahajan, Shri Mohan Bhagwat, Smt Mridula Sinha, Shri Shivraj Singh Chouhan महिलाओं और तथाकथित शूद्रों के साथ जो कुछ वर्षोँ से हुआ है वह शास्त्र सम्मत नहीं है। पूरा समाज अपना व्यवहार सही रखता है तब ही देश बड़ा बनता है माताएं ही मातृभाषा का […]