DR.HEDGEWAR, RSS AND FREEDOM STRUGGLE – 4 (Those 15 days)

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नेशनल मेडिकल कॉलेज कलकत्ता से डॉक्टरी की डिग्री और क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में सक्रिय रहकर क्रांति का विधिवत प्रशिक्षण लेकर डॉक्टर हेडगेवार नागपुर लौट आए। स्थान-स्थान से नौकरी की पेशकश और विवाह के लिए आने वाले प्रस्तावों का तांता लग गया। डॉक्टर साहब ने बेबाक अपने परिवार वालों एवं मित्रों से कह दिया ‘‘मैंने अविवाहित रहकर जन्मभर राष्ट्रकार्य करने का फैसला कर लिया है’’। इसके बाद विवाह और नौकरी के प्रस्ताव आने बंद हो गए और डॉक्टर साहब भी अपनी स्वनिर्धारित अंतिम मंजिल तक पहुंचने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हो गए। उनकी यही पूर्ण स्वतंत्रता उन्हें देश की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के रास्ते पर ले गई।
कलकत्ता में अनुशीलन समिति के कई साथियों के साथ विस्तृत चर्चा करके डॉक्टर हेडगेवार ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से भी भयंकर महासमर की योजना पर विचार किया था। यह भी गंभीरता से चर्चा हुई थी कि जिन कारणों से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम राजनीतिक दृष्टि से विफल हुआ, उन विफलताओं को न दोहराया जाए। नागपुर पहुंचने के कुछ ही दिन बाद वे इस योजना को कार्यान्वित करने के उद्देश्य से शस्त्रों और व्यक्तियों को जुटाने में लग गए। डॉक्टर साहब की क्रांतिकारी मंडली ने यह विचार भी किया कि सेना में युवकों की भारी भरती करवा कर, सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करके अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर दिया जाए।
इसी समय विश्वयुद्ध के बादल बरसने प्रारम्भ हो गए। अंग्रेजों के समक्ष अपने विश्वस्तरीय साम्राज्य को बचाने का संकट खड़ा हो गया। भारत में भी अंग्रेजों की हालत दयनीय हो गई। देश के कोने-कोने तक फैल रही सशस्त्र क्रांति की चिंगारी, कांग्रेस के भीतर गर्म दल के राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा किया जा रहा स्वदेशी आंदोलन और आम भारतीयों के मन में विदेशी सत्ता को उखाड़ फैंकने के जज्बे में हो रही वृद्धि इत्यादि कुछ ऐसे कारण थे, जिनसे अंग्रेज शासक भयभीत होने लगे। अतः इस अवसर पर उन्हें भारतीयों की मदद की जरूरत महसूस हुई। स्वभाविक ही अंग्रेजों को सशस्त्र क्रांति के संचालकों से मदद की कोई उम्मीद नहीं थी। व्यापारी बृद्धि वाले अंग्रेज शासक इस सच्चाई को भलीभांति जानते थे, इसलिए उन्होंने अपने (ए.ओ.ह्यूम) द्वारा गठित की गई कांग्रेस से सहायता की उम्मीद बांध ली। अंग्रेज शासकों ने यह भ्रम फैला दिया कि विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की जीत होने के बाद भारत को उपनिवेश-राज्य (डोमिनियन स्टेट) का दर्जा दे दिया जाएगा। विदेशी शासकों की यह चाल सफल रही। कांग्रेस के दोनों ही धड़े उस भ्रमजाल में फंस गए। अंग्रेजों के लिए मदद जुटाने में लग गए।
डॉक्टर हेडगेवार के मतानुसार ‘‘ब्रिटिश साम्राज्य पर गहराया संकट भारत को स्वतंत्र करवाने का एक स्वर्णिम अवसर है’’ इस अवसर को गंवा देना हमारी उन भयंकर भूलों में एक और भूल जुड़ जाएगी, जो हमने पिछले 12 सौ वर्षों में अनेक बार की है। डॉक्टर साहब का विचार था कि ब्रिटेन की उस समय कमजोर सैन्य शक्ति का फायदा उठाना चाहिए और देशव्यापि सशस्त्र क्रांति का एक संगठित प्रयास करना चाहिए। डॉक्टर हेडगेवार ने कई दिनों तक चर्चा करके कांग्रेस के दोनों धड़ों के नेताओं को सहमत करने की कोशिश की, परन्तु इन पर न जाने क्यों इस मौके पर अंग्रेजों की सहायता करके-कुछ न कुछ तो प्राप्त कर ही लेंगे-का भूत सवार हो गया। यह भूत उस समय उतरा जब अंग्रेजों ने अपनी विजय के बाद भारतीयों को कुछ देने के बजाए अपने शिकंजे को और ज्यादा कस दिया।
डॉक्टर हेडगेवार कांग्रेस के उदारवादी एवं राष्ट्रवादी नेताओं के इस व्यवहार से नाराज तो हुए परन्तु निराश नहीं हुए। उन्होंने देशव्यापि संगठित सशस्त्र विद्रोह का निर्णय किया और इसकी तैयारियों में जुट गए। विप्लवी क्रांतिकारी डॉक्टर हेडगेवार द्वारा शुरु होने वाले भावी विप्लव में इनके एक बालपन के साथी भाऊजी कांवरे नें कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया और उधर विदेशों में क्रांति की अलख जगा रहे रासबिहारी बोस भी इस महाविप्लव की सफलता के लिए काम में जुट गए। डॉक्टर साहब और उनके साथियों ने 1916 के प्रारम्भिक दिनों में ही सशस्त्र क्रांति को सफल करने हेतु सभी प्रकार के साधन जुटाने के लिए मध्यप्रदेश और अन्य प्रांतों का प्रवास शुरु कर दिया। डॉक्टर जी के मध्य प्रांत, बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारी नेताओं के साथ घनिष्ट संबंध पहले से ही थे। कई युवकों को सशस्त्र क्रांति के लिए तैयार करने हेतु अनेक प्रकार के प्रयास किए गए। कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मंचन प्रारम्भ किए गए। इसी तरह व्यायामशालाओं तथा वाचनालयों की स्थापना करके युवकों को सशस्त्र क्रांति का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। जाहिर है इस तरह के प्रयासों का एक मंतव्य प्रशासन और पुलिस को भ्रमित करना भी था। इन केन्द्रों में युवकों को साहस, त्याग और क्षमता के अधार पर भर्ती किया जाता था। युवा क्रांतिकारियों को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय की वीरतापूर्ण कथाओं, शिवाजी महाराज के जीवनचरित्र तथा अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों के साहसिक कार्यों की जानकारी दी जाती थी।
प्रखर राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाकर डॉक्टर साहब ने बहुत थोड़े समय में ही लगभग 200 क्रांतिकारियों को अपने साथ जोड़ लिया। इन्ही युवकों को बाहर के प्रांतों में क्रांतिकारी दलों के गठन का काम सौंपा गया। डॉक्टर हेडगेवार ने करीब 25 युवकों को वर्धा के एक अपने पुराने सहयोगी गंगा प्रसाद के नेतृत्व में उत्तर भारत के प्रांतों में सशस्त्र क्रांति की गतिविधियों के संचालन हेतु भेजा। इस व्यवस्था के लिए आवश्यक धन डॉक्टर साहब ने नागपुर में ही एकत्रित कर लिया था। नागपुर में ही रहने वाले डॉक्टर साहब के अनेक मित्र जो विद्वान तथा पुस्तक प्रेमी थे उनके घरों में रखी पुस्तकों की अलमारियों तथा बक्सों में अब पिस्तोल बम तथा गोला बारूद रखे जाने लगे। नागपुर के निकट कामटी नामक सैन्य छावनी से शस्त्र प्राप्त करने की व्यवस्था भी कर ली गई।
ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति डॉक्टर हेडगेवार का दृष्टिकोण तथा अंग्रेज शासकों को किसी भी ढंग से घुटने टेकने पर मजबूर कर देने की उनकी गहरी सोच का आभास हो जाता है। डॉक्टर हेडगेवार जीवनभर अंग्रेजों की वफादारी करने वाले नेताओं की समझौतावादी नीतियों को अस्वीकार करते रहे। डॉक्टर हेडगेवार का यह प्रयास अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ा जाने वाला दूसरा स्वतंत्रता संग्राम था। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम बहादुरशाह जफर जैसे कमजोर नेतृत्व तथा अंग्रेजों की दमनकारी/विभेदकारी रणनीति की वजह से राजनीतिक दृष्टि से विफल हो गया था। परन्तु 1917-18 का यह स्वतंत्रता आंदोलन कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं द्वारा विश्वयुद्ध में फंसे अंग्रेजों का साथ देने से बिना लड़े ही विफल हो गया। कांग्रेस के इस व्यवहार से भारत में अंग्रेजों के उखड़ते साम्राज्य के पांव पुनः जम गए, जिन्हें हिलाने के लिए30 वर्ष और लग गए।
सशस्त्र क्रांति के द्वारा विदेशी हुकूमत के खिलाफ 1857 जैसे महाविप्लव का विचार और पूरी तैयारी जब अपने निर्धारित लक्ष्य को भेद नहीं सकी, तो भी डॉक्टर हेडगेवार के जीवनोद्देश्य में कोई कमी नहीं आई। जिस विश्वास, साहस और सूझबूझ के साथ उन्होंने शस्त्रों और युवकों को एकत्रित करके अंग्रेजों के साथ युद्ध की तैयारी की थी, उसी सूझबूझ के साथ डॉक्टर हेडगेवार ने सब कुछ शीघ्रता से निप्टाकर/ समेटकर अपने साथ जुड़े देशभक्त क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के कोपभाजन से बचा लिया।
डॉक्टर साहब को यह समझते हुए देर नहीं लगी कि यदि इस समय महाविप्लव की भूमिगत तैयारी की जानकारी अंग्रेजों को लग गई तो1857 की तरह ही निर्दोष लोगों पर भीषण अत्याचार होंगे। अतः देश के विभिन्न केन्द्रों से उन युवा क्रांतिकारियों को वापस बुला लिया गया जिन्हें डॉक्टर साहब ने प्रशिक्षित करके भेजा था। इसी तरह शस्त्रों को ठिकाने लगाकर सभी प्रकार के साक्ष्यों को समाप्त कर दिया गया। इस कार्य को डॉक्टर साहब के अभिन्न साथियों अप्पाजी जोशी, बाबू राव हडकरे, नानाजी पुराणिक तथा गंगाप्रसाद पांडे की टीम ने बड़ी गुप्त रीति से सफलतापूर्वक सम्पन्न कर दिया।
सशस्त्र क्रांति के नेताओं ने डॉक्टर हेडगेवार के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में महाविप्लव के लिए एकत्र किए गए साजो/सामान और अंग्रेजों के हाथ लग सकने वाले दस्तावेजों को इस तरह से किनारे कर दिया कि प्रशासनिक अधिकारी सर पटकते रह गए, किसी के हाथ कुछ नहीं लगा। सारे महाविप्लव की तैयारी को गुप्त रखने का लाभ तो हुआ परन्तु एक नुकसान यह भी हुआ जिसका आज अनुभव किया जा रहा है कि बहुत गहरी और गुप्त ब्रिटिश विरोधी जंग की तैयारी इतिहास के पन्नों से भी नदारद हो गई।

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