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भारत में चल रहे सभी प्रकार के स्वतंत्रता-आंदोलनों, शस्त्रक्रांति के प्रयत्नों, समाज सुधार के लिए कार्यरत विभिन्न संस्थाओं तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जागरण में जुटी सभी धार्मिक संस्थाओं का निकट से अध्ययन करने के लिए डॉक्टर साहब इनके सभी कार्यकलापों में यथासम्भव भागीदारी करते थे। उनका यह निश्चित मत था कि देश के शत्रुओं को जिस किसी भी मार्ग से भारत भूमि से निकाला जा सके, वही उचित तथा योग्य है। इसी दृष्टिकोण एवं लक्ष्यप्रेरित मानसिकता के साथ डॉक्टर हेडगेवार ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में संचालित अहिंसावादी आंदोलनों में शामिल होने का निश्चय किया। उनके सामने एकमात्र अंतिम लक्ष्य अपनी मातृभूमि की पूर्ण स्वतंत्रता था। शेष सब प्रकार के मार्ग एवं तत्कालिक उद्देश्य उनके लिए किसी अंतिम ध्येय के विभिन्न रास्ते थे। यही वजह थी कि कांग्रेस द्वारा प्रायोजित आंदोलनों में पूरी शक्ति के साथ शिरकत करते हुए भी डॉक्टर हेडगेवार ने क्रांतिकारियों की सब प्रकार की गतिविधियों की जानकारी रखी और इनमें पूरा सहयोग भी करते रहे।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने देशव्यापी स्वरूप अख्तियार कर लिया था। इन दिनों कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई में लोकमान्य तिलक का बोलबाला था। डॉक्टर साहब ने कांग्रेस के मंचों से ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जागरण का कार्य बहुत सतर्कता एवं सक्रियता से प्रारम्भ कर दिया। डॉक्टर साहब ने अपने कुछ कांग्रेसी मित्रों को साथ लेकर ‘‘नागपुर नेशनल यूनियन’’ की स्थापना की। इस संस्था ने सीना तानकर पूरी ताकत के साथ पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करते हुए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रचार प्रसार युद्ध स्तर पर प्रारम्भ कर दिया। इसी समय मध्य प्रांत की कांग्रेस समिति द्वारा एक हिन्दू साप्ताहिक पत्र ‘संकल्प’ प्रारम्भ करके डॉक्टर हेडगेवार को उसका संरक्षक नियुक्त कर दिया। डॉक्टर हेडगेवार ने इस जिम्मेदारी को भी पूरी तन्मयता से निभाया, इस हेतु उनके महाकौशल के प्रवास के समय अनेक हिन्दू युवक उनके सम्पर्क में आ गए।
यह कार्यकाल 1919 का था। नागपुर में रहते हुए डॉक्टर हेडगेवार ने विद्यार्थियों की सभाओं में देशभक्ति पूर्ण भाषण देने शुरु कर दिए। जब अनेक युवा कुछ करने के लिए तैयार हो गए, उनके इस उत्साह को दिशा देने के लिए डॉक्टर हेडगेवार ने एक और संस्था ‘‘राष्ट्रीय उत्सव मंडल’’ का गठन किया। वे स्वयं कई वर्षों तक उसके महामंत्री की जिम्मेदारी निभाते रहे। इस संस्था के अनेकविध कार्यक्रमों में छात्रों को हिन्दू धर्म, राष्ट्रीय संस्कृति, स्वतंत्रता का महत्व तथा ब्रिटिश सरकार के द्वारा हिन्दुओं के अस्तित्व को ही मिटा देने के षड्यंत्र की जानकारी दी जाती थी। मध्य प्रांत के गणमान्य नेता डॉक्टर मुंजे, लोकमान्य अणे, शरद पेंडसे के भाषण इस संस्था की सभाओं में होने लगे। विभिन्न भाषा तथा मजहबों से जुड़े युवा लोग भारतमाता की आराधना करने लगे और देखते ही देखते एक शक्तिशाली संगठन का स्वरूप सामने आना प्रारम्भ हो गया। इसी दौरान 1920 में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन को नागपुर में करने का निश्चय हुआ। उसे सफल बनाने के लिए तैयारियां प्रारम्भ हो गईं। इस हेतु कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता डॉ. परांजपे ने डॉक्टर हेडगेवार की सहायता से जनवरी 1920 में ‘भारत सेवक मंडल’ की स्थापना की। सार्वजनिक गतिविधियों को सुचारू ढंग से चलाने के लिए और सेवाभावी युवकों को वॉलिंटियर बनाने के लिए गठित हुए इस ‘भारत सेवा मंडल’ के प्रमुख की जिम्मेदारी डॉक्टर हेडगेवार को दी गई। उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप इस मंडल में एक हजार से ज्यादा युवकों की भर्ती हो गई। इसी बीच अधिवेशन के प्रचार प्रसार के लिए जन समितियों का गठन किया गया, उनमें स्वागत समिति में डॉक्टर हेडगेवार को प्रमुख स्थान दिया गया।
दिनांक 26 दिसम्बर 1920 को कांग्रेस का अधिवेशन शुरु हो गया। इससे पूर्व डॉक्टर हेडगेवार और उनके कांग्रेसी मित्रों ने एक प्रस्ताव ‘‘पूर्ण स्वतंत्रता ही हमारा उद्देश्य है’’ तैयार करके गांधी जी के समक्ष रखा। परन्तु गांधी जी ने विनम्र भाव से इतना ही कहा कि ‘‘स्वराज्य में पूर्ण स्वतंत्रता का समावेश हो जाता है’’ और प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। इस पर भी डॉक्टर जी तथा उनके साथी उस अधिवेशन की तैयारी एवं व्यवस्था में पूरी शक्ति से जुटे रहे। यह अधिवेशन अब तक के हुए अधिवेशनों में सबसे बड़ा था। स्वयंसेवकों के प्रमुख के नाते डॉक्टर हेडगेवार ने थोड़ा समय और अधिक संख्या का ध्यान रखते हुए अति उत्तम व्यवस्था की। इस अधिवेशन में डॉक्टर हेडगेवार ने अनुभव किया कि सेवा भाव से काम करने वाला स्वयंसेवक यदि अनुशासित, समर्पित और दृढ़ मानसिकता वाला नहीं हुआ तो कभी भी पथ से विचलित होकर अपने ध्येय को छोड़कर भाग सकता है।
इसी तरह विषय समिति की बैठक में डॉक्टर हेडगेवार ने कांग्रेस के उद्देश्य के सम्बंध में प्रस्ताव रखा, ‘‘भारतीय गणतंत्र की स्थापना करना तथा पूंजिवादी अत्याचारों से राष्ट्रों को मुक्त करना’’। इस प्रस्ताव की भाषा से पता चलता है कि डॉक्टर हेडगेवार ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतर्राष्ट्रीय मंच का विषय बनाकर विश्व के सभी देशों को ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर प्रहार करने की प्रेरणा देने का प्रयास किया था। इतनी गहरी और दूरदर्शिता पूर्ण रणनीति थी ये। परन्तु कांग्रेस में इस सोच का आधार समझने वालों की कमी के कारण यह प्रस्ताव भी पारित नहीं हो सका।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में डॉक्टर केशवराव हेडगेवार की भागीदारी से उनके चरित्र की दृढ़ता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति अटल निष्ठा, पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सभी मार्गों का औचित्य और अपने प्रिय नेताओं की अप्रिय बातों का भी डटकर विरोध करने का साहस इत्यादि से उनके सम्पूर्ण राष्ट्रवादी व्यक्तित्व का सहज आभास हो जाता है। कांग्रेस के साथ अनेक मुद्दों पर विचार भिन्नता होते हुए भी डॉक्टर हेडगेवार ने कांग्रेस के अंदर एक आदर्श कार्यकर्ता के रूप में अपना स्थान बना लिया था। उल्लेखनीय है कि असहयोग आंदोलन में कांग्रेस के पूर्णकालिक अवैतनिक कार्यकर्ता और निडर नेता के रूप में अपनी निरंतर सक्रियता करते हुए उन्होंने एक दिन भी अपनी मूल प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा और सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया।
नागपुर में सम्पन्न कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व मध्य भारत की प्रांतीय कांग्रेस समिति ने ‘असहयोग मंडल’ नाम से एक दल तैयार कर लिया था। डॉक्टर हेडगेवार को इस मंडल में एक सक्रिय भूमिका के लिए नियुक्त किया गया। इनको जनसभाओं के आयोजन का प्रमुख कार्य सौंपा गया। डॉक्टर साहब ने दिन रात परिश्रमपूर्वक इसको सफलतापूर्वक सम्पन्न करके कांग्रेस की प्रांतीय समिति में अपना प्रभाव जमा लिया। अब वे कांग्रेस के नेता भी कहलाने लगे। डॉक्टर जी के एक साथी नारायण हरि पालकर ने डॉक्टर जी की जीवनी में लिखा है ‘‘डाक्टर जी को राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए जैसे हिंसा से घृणा नहीं थी, वैसे ही उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए असहयोग आंदोलन से भी उनका असहयोग नहीं था। विदेशियों को किसी भी मार्ग से बाहर निकालने के लिए आगे आने वाले व्यक्ति पर डॉक्टर जी को अभिमान होता था। इसीलिए वे उसके साथ भरसक सहयोग करते थे’’।
नागपुर में सम्पन्न कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में प्रायः सभी प्रमुख समितियों के माध्यम से सक्रिय रहकर डॉक्टर हेडगेवार ने अपने संगठन कौशल एवं अपनी ध्येयनिष्ठ विचारधारा की अमिट छाप छोड़कर स्पष्ट कर दिया कि वह भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति तथा अहिंसावादी सत्याग्रह इत्यादि किसी भी मार्ग पर चलने के लिए कटिबद्ध हैं। डॉक्टर साहब के अनुसार, जिस प्रकार सभी छोटी-बड़ी नदियों के रास्ते भिन्न होते हुए भी सबका अंतिम लक्ष्य एक ही होता है-समुद्र को प्राप्त करना। उसी तरह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सभी स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों, आंदोलनकारियों, सत्याग्रहियों, राष्ट्रभक्त कवियों यहां तक कि घर में बैठकर परमात्मा से अंग्रेज सत्ता को समाप्त करने की प्रार्थना करने वालों का अंतिम लक्ष्य एक ही है -‘‘अखंड भारत की पूर्व स्वतंत्रता’’। इसीलिए डॉक्टर हेडगेवार ने ‘मैं’ से ऊपर उठकर ‘हम’ के सिद्धांत पर चलते हुए सर्व प्रकार के स्वतंत्रता सेनानियों का तन-मन-धन एवं संकल्प के साथ सहयोग करने में तनिक भी संकोच नहीं किया।